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आचार्य श्रीराम शर्मा >> आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 4187
आईएसबीएन :81-89309-18-8

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आत्मीयता का माधुर्य और आनंद

आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार


संभव है संसार के किसी और भाग में थी अब ऐसे गुलाब के पौधे हों जिनमें काँटे न हों, कुमुदिनी हो पर दिन में भी खिलती हो, अखरोट के वृक्ष हों और ३२ वर्ष की अपेक्षा १६ वर्ष में ही अपनी सामान्य ऊँचाई से भी बड़े होकर अच्छे फल देने लगते हों। पर वे होंगे अमेरिका के केलिफोर्नियाँ में विशेष रूप से तैयार किए गए पौधों की ही संतान। केलिफोर्नियाँ में यह पौधे किसी वनस्पति शास्त्री या किसी शोध संस्थान द्वारा तैयार नहीं किए गए। उसका श्रेय एक अमेरिकन संत लूथर बरबैंक को है, जिन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में प्रेम योग का अभ्यास किया और यह सिद्ध कर दिया कि प्रेम से प्रकृति के अटल सिद्धांतों को भी परिवर्तित किया जा सकता है। यह पौधे केलिफोर्नियाँ का लूथर का यह बगीचा उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

एक बार एक सज्जन इस बाग से एक बिना काँटों वाला 'सेहुँड़ लेने गए ताकि वे अपने खेत के किनारे-किनारे थूहड़ के रूप में रोप सकें। अमरीका क्या सारी दुनियाँभर में संभवत यही वह स्थान था जहाँ सेहुँड बिना काँटों के थे। बाग का माली खुरपी लेकर डाल काटने चला तो दूर से ही लूथर बरबैंक ने मना किया बोले, आप से काटते नहीं बनेगा लाओ, मैं काट देता हूँ। यह कहकर खुरपी उन्होंने अपने हाथ में ली और बोले, माना कि यह पौधे हैं, इनमें जीवन के लक्षण प्रतीत नहीं होते तथापि यह भी आत्मा हैं और प्रत्येक आत्मा प्रेम की प्यासी, भावनाओं की भूखी होती है। हम संसार को कुछ दे नहीं सकते, तो प्रेम और करुणाशील भावनाएँ तो प्रदान कर ही सकते हैं। कदाचित मनुष्य इतना सीख जाए तो संसार के सुख-शांति का वारापार न रहे।

बरबैंक सेहुँड़ के पास बैठकर खुरपी से सेहुँड़ की डाल काटते जाते थे। उनकी उस क्रिया में भी कितनी आत्मीयता और ममत्व झलकता था यह देखते ही बनता था। जैसे कोई माँ अपने बच्चे को कई बार दंड भी देती है, पर परोक्ष में उसका हित और मंगल भाव ही उसके हृदय में भरा रहता है, वैसे ही श्री बरबैंक सेहुँड़ को काटते जाते और भावनाओं का एक सशक्त स्पंदन भी प्रसारित कर रहे थे, ऐ पौधे ! तुम यह न समझना कि हम तुम्हें काटकर अलग कर रहे हैं। हम तो तुम्हारे और अधिक विस्तार की कामना से विदा कर रहे हैं यहाँ से चले जाने के बाद भी तुम मुझसे अलग नहीं होंगे। तुम मेरे नाम के साथ जुड़े हो तुम मेरी आत्मा के अंग हो। माना लोक-कल्याण के लिए तुम्हें यहाँ से दूर जाना पड़ रहा है, पर तुम मेरे जीवन का अभिन्न अंग हो। जहाँ भी रहोगे, हम तुम्हें अपने समीप ही अनुभव करेंगे, ऐसी भावनाओं के साथ बरबैंक ने सेहुँड़ की दो-तीन डालें काट दी और आगंतुक उन्हें ले गया। इस तरह इस बाग की सैकड़ों पौध सारी दुनियाँ में फैली और बरबैंक के नाम से विख्यात होती गईं।

यह कोई गल्प कथा नहीं, वरन् एक ऐसा तथ्य है कि जिसने सारे योरोप के वैज्ञानिकों को यह सोचने के लिए विवश कर दिया कि क्या सचमुच ही भावनाओं के द्वारा पदार्थ के वैज्ञानिक नियम भी परिवर्तित हो सकते हैं ?

जिस तरह भारतवर्ष में इन दिनों नेहरू गुलाब, शास्त्री गेहूँ आदि नामों से पौधे, अन्नों की विशेष नस्लें कृषि विशेषज्ञ वैज्ञानिक अनुसंधान से तैयार कर रहे हैं, उसी प्रकार बरबैंक पोटैटो (आलू) बरबैंक स्क्वै श, बरबैंक चेरी, बरबैंक रोज, बरबैंक वालनट (अखरोट) आदि सैकड़ों पौधों, फलों, सब्जियों तथा अन्नों की नस्लें बरबैंक के नाम से प्रचलित हैं। इन्हें बरबैंक ने तैयार किया यह सत्य है, पर किसी वैज्ञानिक पद्धति से नहीं, यह उससे भी अधिक सत्य है। यह सब किस प्रकार संभव हुआ उसका वर्णन स्वयं लूथर ने अपने शब्दों में 'दि ट्रेनिंग आफ ह्यूमन प्लांट' नामक पुस्तक में निम्न प्रकार लिखा है। यह पुस्तक न्यूयार्क की सेंचुरी में १६२२ में प्रकाशित हुई है। लूथर लिखते हैं-

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    अनुक्रम

  1. सघन आत्मीयता : संसार की सर्वोपरि शक्ति
  2. प्रेम संसार का सर्वोपरि आकर्षण
  3. आत्मीयता की शक्ति
  4. पशु पक्षी और पौधों तक में सच्ची आत्मीयता का विकास
  5. आत्मीयता का परिष्कार पेड़-पौधों से भी प्यार
  6. आत्मीयता का विस्तार, आत्म-जागृति की साधना
  7. साधना के सूत्र
  8. आत्मीयता की अभिवृद्धि से ही माधुर्य एवं आनंद की वृद्धि
  9. ईश-प्रेम से परिपूर्ण और मधुर कुछ नहीं

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